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कपडो पर बहस क्यों ?

"UTHAN" THE BLOG PRESENTED BY DEEPAK NIKUB
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आये दिनों देश में कपडो पर बहस का मुद्दा उठता हैं । परन्तु इसका पक्षधार बनना ज्यादा सरल प्रतीत होता हैं । जरा सोचियें यदि कपडों का महत्व ही नहीं होता तो
– द्रोपदी के चीर हरण के कारण महाभारत का प्रार्दुभाव ही क्यों होता ?
– कफन की प्रथा क्यों बनती ?
– रीत प्रथाओं में कपडों की महता क्यों होती ?
– सांस्कृतिक वेषभुशा का महत्व ही क्यों होता ?
– सामाजिक आयोजनों में एवं कार्यस्थलों की वेषभूशा का निर्धारण क्यों किया जाता हैं ?

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सीधा सा अर्थ हैं हमारी वेशभूषा ही हमारी पहचान हैं ।

हमारी वेशभूषा न केवल हमारी संस्कृति बल्कि हमारी सोच का भी प्रतिबिम्ब हैं । अतः पहनावें की बहस को महत्वहीन तो नहीं कहा जा सकता हैं ।

पुर्ण पहनावें के फायदें
– धार्मिक महत्व की द्ष्टि से धर्मशास्त्र पहनावें एवं कपडो को अधिकाधिक महत्व प्रदान करते हैं ।
– वैज्ञानिक दृष्टि से पूर्ण कपडें पहिनने से त्वचा ढकी रहती हैं अतः चर्म रोगो से बचाव एवं त्वचा की सुन्दरता बरकरार रहती हैं ।
– सामाजिक दृष्टि से आपकी संस्कृति एवं सोच का निर्धारण भी आपके पहनावे के आधार पर किया जाता हैं । अतः सामाजिक स्तर पर आपकी शालीनता एवं शिष्ठता का आंकलन भी आपके पहनावे के आधार पर ही किया जाता हैं ।

अतः सम्भवतः अपने पहनावें का निर्धारण जरा सोच समझ कर ही करें तो बेहतर होगा ताकि न केवल सामाजिक एवं नैतिक स्तर बल्कि सांस्कृतिक स्तर पर भी भारतीय विश्वस्तरीय छवि को विकसित करने हेतु प्रयास किये जा सके ।

शुभकामनाओं सहित,
दीपक निकुब

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