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‘हिन्दी उत्थान‘ – असम्भावनाओं के बीच संभावनाओं की तलाष

"UTHAN" THE BLOG PRESENTED BY DEEPAK NIKUB
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आज मैं आपकें सामनें हिन्दी का गुणगाण करने जा रहा हूं । हिन्दी – हॉं जी आपने सही पढा मैं हमारी मातृ भाषा हिंदी की ही बात कर रहा हूं । 24 भाषाओं के ज्ञाता हिन्दुस्तान को आज अपनी ही मातृभाषा के प्रति अनभिज्ञता वैचारिक दयनीयता को प्रतिबिंबित करती नजर आती हैं ।

कृपया कुछ प्रश्न अपने आप से पूछियें :-

 भारत की आजादी के 68 वर्षों के बीत जाने के पश्चात भी क्या हम हिंदी को आजाद कर पायें हैं ?

 क्या हिंदी को वह सम्मान मिल पाया हैं जिसकीं वो हकदार थी ?

 आज भी हमें हिंदी दिवस मनानें की आवश्यकता पड रही हैं क्या यह मातृभाषा का अपमान नहीं हैं ?

 क्या हम कभी हिंदी को विदेशी भाषाओं से आजाद करवाकर उसें उसकें सम्मानजनक स्थान पर प्रतिस्थापित कर पायेंगें ?

 क्या हिंदी हमारे लिए महज एक औपचारिकता बन कर रह जायेंगी ?

यदि मैं सही हूं तो शायद आप मेरे इन सवालोंपर निरूतर हो गये होंगे । परन्तु जरा एक पलके लिए सोचिये कि आज हमारी मातृभाषा की दुर्दशा का जिम्मेदार कौन हैं

Beautiful Hindi Fonts

जब हमारे चुनिंदा नेता हिंदी में उद्धोष करते नजर आये तब लगा कि शायद अब हिंदी की स्थिति में सुधार आयेंगा परन्तु वह पहल भी हमारी असहयोगिता की भेंट चढती ही नजर आयी ।आज हम 21 वीं सदी में जीतें हुए नित नयें आयामों की प्राप्ति को सभंव बना रहें हैं परन्तु आज भी हम अपनी मातृभाषा को अन्तर्राष्ट्ीय परिवेश में ही नहीं वरन अपने हिन्दुस्तान में भी सम्मानित स्थान पर प्रतिस्थापित करने में सक्षम नहीं बन पायें । वैचारिक दुर्दशा ही कहिए की आज हिंदी हमारी होकर भी हमारी नहीं हो पायीं ।

आपमें से कितनें लोग अपने हस्ताक्षर हेतु हिन्दी लिपि का प्रयोग करते हैं ? अगर मैं गलत नहीं तो आप उनमें से नहीं होंगे । तो वक्त आ गया हैं नयीं शुरूआत करने का एक उन्नत देशव्यापी सोच की ओर बढने का तो आज ही शुरूआत करें और इस हिन्दी उत्थान रूपी महायज्ञ में अपनी आहूती दें शायद आपका ये प्रयास मेरे उपयुक्त प्रश्नों के उत्तर स्वरूप हों और आपका ये कदम मेरे इन नकारात्मक प्रश्नों की ओर एक सकारात्मक कदम साबित हों । और हॉं कहीं ना कहीं आपका ये कदम आपकों हजारों विदेशी लिपि में किए गयें हस्ताक्षरों के मघ्य एक पृथक पहचान दिलवा पानें की संभावाना रखता हैं । और क्या पता कोई निरला आपकें उक्त प्रयास से प्रोत्साहित होकर इस महायज्ञ में अपनी आहूती देकर ना केवल आपकों और मुझें बल्कि हिंदी रूपी मातृभाषा को ही कृतज्ञ कर दें ।सम्भावनाऐं अन्नत हैं अपनाकर देंखें जहॉं तक मेरा मानना हैं आपकों आत्मशान्ति तो अवश्य ही प्राप्त होगी ।

मैं स्वयं भी हिंदी भाषा को लेकर आतुर था अतः प्रयासों की कडी में एक प्रयास मैंनें भी किया । मैंनें सोशल साईट्स् पर हिंदी उत्थान हेतु अथक प्रयास किए परन्तु मुझें वो परिणाम नहीं प्राप्त हुए जिनकों मैं चाहता था । हॉं होते भी कैसे ये तो महायज्ञथा जिसें सामूहिक आहूतीयों की आवश्यकता थीपरन्तु मैंनें तो अकेले ही कदम बढा दिए जो नाकाफी थे ।

मेरे ज्ञान अनुसार लगभग सभी देशों ने अपनी स्वतंत्रता के पश्चात अपनी राष्ट् भाषा कोव्यापक रूप से न केवल लागू वरन उपयोगिता सुनिश्चित करने हेतु अथक प्रयास किए और कहीं न कहीं वे सफल भी हुए और होगे भी क्यों न इच्छाशक्ति एवं अथक प्रयासों के परिणामस्वरूप मानव ने अनेक ऐसे कार्यों कोसंभव बनाया हैं जो मानवीय क्षमताओं से परे थे । आज हम विश्व की दूसरी सबसें बढी मानवशक्ति के साथ ही प्रथम सर्वव्यापक युवा शक्ति को धारण किए हुए हैं अतः उक्त आकडों को देखते हुए मुझें विश्वास हैं कि हम चाहें तो हिंदी को न केवल भारतीय परिवेशमें बल्कि अन्तर्राष्ट्ीय स्तर पर भी वो सम्मान दिलाने में सक्षम हैं जिसकी हमारी मातृभाषा हकदार हैं । बस कमी हैं तो केवल इच्छाशक्ति की ।

मैं इंतजार करूंगा उस दिन का जिस दिन हमारीहिंदी को वो सम्मान हासिल होगा जिसकी केवल मैं ही नहीं वरन् प्रत्येक हिन्दुस्तानी आशा रखता हैं । और हॉं शायद उस दिन मेरे ये नकारात्मक सवाल सकारात्मकता के परिवेश में अपना वर्चस्व खो देगें । तो उठो और चल पडो हिन्दी उत्थान रूपी महायज्ञ में सम्मिलित होने हेतु अपनी आहूतीयों को समर्पित करने जो एक नवीन युग की शुरूआत एक नवीन हिन्दी रूपी फुलों से सजें हिन्दुस्तान को महकानें हेतु समर्पितता की नवीन परिकाष्ठता की परिपाठी हों ।

और हॉं मैं आशा करता हूं की मेरी इस प्रथम आहूती को महायज्ञ की ओर प्रशस्थ करने हेतु आप भी उतने ही आतुर होगें जितना मैं हूं । कृपया मेरी इस आहूती को व्यर्थ न जानें दे ।

शुभकामनाओं सहित,

दीपक निकुब

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