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देष में इन दिनों अत्यंत दयनीय स्थिति उभर कर आयीं हैं । एक ओर जेएनयू कांड जिसमें देष के चंद युवा षिक्षा के मंदिर में देषद्रोहियों के पक्ष में नारे लगातें देखे जाते हैं । वहीं दूसरी ओर जाट आंदोलन जिसमें आरक्षण की मांग को लेकर अहिंसा को तांक पर रख दिया जाता हैं ।
जेएनयू कांड में चुनिंदा युवा देष के खिलाफ आवाज उठाते हुए कष्मीर को भारत से आजाद करवानें की पुरजोर मांग करते दिखायीं देते हैं । देखकर आष्चर्य होता हैं कि ये युवाषक्ति को नेतृत्व करने योग्य युवा एक देषद्रोही को न्याय दिलाने की बात करते हैं उसें अपना आदर्ष मानते हुए उसकीं फांसी को गलत ठहराते हुए देष को धत्ता बताते हुए जोरषोर से देषव्यापी युवाओं को मिडिया के माध्यम से भम्रित करने का कार्य करते हैं ।
वहीं दूसरी ओर जाट आंदोलन में आरक्षण की मांग को इतनें हिंसक तरीकें से रखने का प्रयास किया जाता हैं जिसमें लोकव्यवस्था को धत्ता बताते हुए अपना उल्लू हर हाल में सीधा करने का प्रयास किया जाता हैं ।
वहीं जेएनयू कांड में जब कन्हैया को गिरफतार किया जाता हैं और कोर्ट ले जाया जाता हैं उसी के मध्य नया मामला सामने आता हैं जिसमें देष के चुनिंदा वकील कानून को अपने हाथ में लेते हुए कन्हैया एवं मिडिया के साथ मारपीट कर स्वयं को देषभक्ति का नुमाइंदा बनाने की असफल कोषिष में लग जाते हैं ।
जरा सोचिये क्या इन सभी मामलों के परिणामस्वरूप भारतीय छवि को अन्तर्राष्ट्ीय स्तर पर धुमिल करने का प्रयास नहीं किया गया ?
चाहे वह जेएनयू कांड हो अथवा वकीलों द्वारा मारपीट का मामला उक्त सभी मामलों में व्याप्त लोगो में षिक्षित लोग कहीं अधिक मात्रा में हैं । क्या 21 वीं सदीं में भारतीय षिक्षा के यहीं मायनें रह गये हैं ?
क्या उक्त मामलें हमारी इंसानियत पर कटाक्ष करते नजर नहीं आते ?
आज उक्त मामले हमें यह सोचने पर मजबूर कर रहे हैं कि ऋषियों एवं महात्माओं की भूमि भारतवर्ष में जन्म लेकर भी हम अपनी इंसानियत को खोते जा रहे हैं । ये सीधा ही भारत की राष्ट्गुरू की छवि पर एक हिंसक कटाक्ष हैं ।
अन्त में इतना ही कहना चाहता हूं कि कृपया अपने विवेक का प्रयोग करें एवं इंसानियत को कायम रखे यहीं आपको अपने भारतीय होने के गर्व करने का कारण बनेगा ।
शुभकामनाओं सहित,
दीपक निकुब
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